याद आता है 1971 के युद्ध से पहले जब पूर्वी पाकिस्तान से बहुत अधिक संख्या में शरणार्थी पश्चिमी बंगाल होते हुए पूरे देश में आ गए थे, उस समय भी आर्थिक समस्या खड़ी हो गई थी । तब भारतीय डाक विभाग ने एक पांच पैसे का डाक टिकट जारी किया था जिस पर शरणार्थी सहायता लिखा गया था और यह टिकट भेजे जाने वाले प्रत्येक पत्र पर, चाहे वह साधारण पत्र हो या पंजीकृत या बीमा पत्र हो, सभी पर अतिरिक्त postage शुल्क के रूप में लगाया जाता था, और एकत्र होने वाला यह राजस्व सीधे भारत सरकार को संभवतः मासिक रूप से भेज दिया जाता था। उस समय मेल ट्रैफिक भी बहुत था, इसलिए राजस्व भी बहुत एकत्र होता था ।
आज भी कोरोंना के प्रकोप से त्रस्त होने के कारण आर्थिक समस्याओं से जूझने में भारतीय डाक का ऐसे भी एक योगदान हो सकता है, अगर समय रहते निर्णय लिया गया तो ।
मेरे विचार से सभी पत्रो पर एक रुपए का अतिरिक्त राजस्व, पंजीकृत पत्रों और स्पीड पोस्ट पर पांच रुपए का राजस्व लगाया जा सकता है और इस अतिरिक्त राजस्व को कोरोना राजस्व नाम या अन्य कोई उपयुक्त नाम दिया जा सकता है ।
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